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कहानी संग्रह >> एकान्त तपस्वी

एकान्त तपस्वी

विजय शिंदे

प्रकाशक : शब्दालोक प्रकाशित वर्ष : 2007
पृष्ठ :88
मुखपृष्ठ : सजिल्द
पुस्तक क्रमांक : 8868
आईएसबीएन :8190357751

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डा. विजय शिंदे का कहानी संग्रह

Ek Break Ke Baad

प्रस्तुत हैं पुस्तक के कुछ अंश

मैं इंसान हूँ, इंसान के पास बैठा हूँ। लेकिन न जाने किसने हम लोगों पर धर्म की मोहर लगाई है।...

अब मैं हिन्दू हूँ और वे मुसलमान। हम पर इंसान होमे के बावजूद हिन्दू, मुसलमान की मोहर लगी है। कितने सारे लोगों ने इस मोहर को मिटाने का कार्य किया है। लेकिन मिटती कहाँ है? और भी गाढ़ी बन रही है, खाई को बढ़ा रही है। एक के दो देश बने, फिर भी समस्याएं बढ़ती गईं, और भी बढती जाएँगी।

सआदत हसन मंटो का टोबा-टेक-सिंह विभाजन रेखा पर जान देगा, ठंडा गोश्त पर जिंदा समझकर बलात्कार होगा, खोल दो कहते ही कोई युवती मजबूर होकर सलवार का नाड़ा खोलेगी। भीष्म साहनी धर्म के अन्धकार को देखकर तमस लिखेंगे, यशपाल झूठा-सच लिखेंगे। कमलेश्वर कितने पाकिस्तान बनाओगे जैसा सवाल करते रहेंगे। फिर भी धर्म से अंधा बना आदमी, आदमी होकर भी विषैला सां बनेगा और इस सवाल से मुँह मोड़कर दूसरे पर वार करेगा।

अनुक्रम

1. छोटी-प्ती वात
2. दादी माँ की बिंदी
3. विदा ले ली
4. समस्याओं की जड़
5. नजरें
6. उपहासात्मक हँसी
7. आवासाहब की मूछें
8. लिफाफा
9. स्वाभिमान
10. कौन सिंलेगा
11. जप हरे कृष्णा हरे राम
12. भूख
13. कभी-कभी
14. एकांत तपस्वी
15. एक और पिताजी
16. भिखारी
17. प्यारे तकिए को

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